बुधवार, 12 अक्तूबर 2011

संतुष्ट वही जो भगवान को भजे

प्रेम रावत 'महाराजी'।। 

एक बार कुछ लोगों में इस संबंध में चर्चा हुई कि इस संसार में ऐसा कौन है जो सच में संतुष्ट है? लोगों ने विचार-विमर्श कर नतीजा निकाला कि राजा सुखी होगा। राजा इसलिए संतुष्ट होगा, क्योंकि उसके पास राज-पाट है, उसके लिए सब कुछ है। उन्होंने राजा से पूछा कि क्या आप संतुष्ट हैं?

राजा ने कहा, मैं संतुष्ट कहां हूं? मुझे तो हमेशा चिंता लगी रहती है कि जो मेरा पड़ोसी राजा है, कहीं वह मेरे राज्य पर हमला न कर दे। हमेशा यही डर लगा रहता है कि मेरा ही कोई सिपाही मुझे मार न दे। तब उन लोगों ने राजा से पूछा कि फिर आप क्या समझते हैं कि कौन संतुष्ट होगा? तब राजा ने उत्तर दिया कि बादशाह संतुष्ट होगा।

लोग बादशाह के पास गए और पूछा कि आप क्या संतुष्ट हैं? बादशाह ने भी वही बात कही कि मुझे तो अपनी जिंदगी की फिक्र लगी रहती है। मैं कहां संतुष्ट हूं? जब बादशाह से भी संतोषजनक जवाब नहीं मिला तो उन लोगों ने सोचा कि जिसके पास कुछ भी नहीं है, वह संतुष्ट होगा। क्योंकि उसके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है, इसलिए हो सकता है वह संतुष्ट हो। तो लोगों ने भिखारी के पास जाकर पूछा कि क्या तुम संतुष्ट हो? उसने कहा, मैं कहां संतुष्ट हूं? मुझे तो हमेशा यही चिंता लगी रहती है कि मेरा अगले समय का खाना कहां से आएगा?

आखिर में लोग भगवान के पास पहुंचे। भगवान से पूछा गया, 'इस संसार में कौन सुखी है? कौन सही मायने में संतुष्ट है?' भगवान ने कहा, 'जो मेरा भजन करता है, जो मुझे याद करता है, इस संसार में सिर्फ वही संतुष्ट है, बाकी कोई नहीं।'

तुम सब काम अपने सुख और आनंद के लिए करते हो और उसमें बात आ जाती है भगवान की। यह सबको मालूम है कि अगर कोई परमानंद है तो केवल भगवान ही है। भगवान को परमानंद भी कहते हैं। जब मैं बात करता हूं भगवान की, तो मैं किस भगवान की बात कर रहा हूं? लोग अचंभे में पड़ जाते हैं कि कितने भगवान हैं? देख लो, कितने भगवान हैं-

एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट-घट में बैठा।

एक राम का जगत पसारा, एक राम जगत से न्यारा।।

एक बार एक जिज्ञासु ने पूछा, 'महाराजी, हमने जब यह सुना तो हमको अच्छा तो लगा, परंतु हमको भ्रम हो गया कि हम किस भगवान के पीछे पड़ें ?' मैंने उसका जवाब दिया कि भाई, सबसे नजदीक वाले को पकड़ो। जब पकड़ना ही है तो सबसे नजदीक वाले को पकड़ना चाहिए। दूर किस लिए भागते हो ? अगर जानना ही है तो जो सबसे नजदीक है, जो तुम्हारे घट में है, उसको जानो। उसकी पूजा करो।

यह सचमुच में तुम्हारे लिए खुशखबरी है कि जो तुम्हारे घट में बैठा है, उसको तुम जान सकते हो, उसका तुम अनुभव कर सकते हो। मैं यही बताना चाहता हूं कि अगर तुम अपने घट में स्थित परमात्मा का अनुभव करना चाहते हो तो उसकी विधि हमारे पास है। तुम उसे खोजो। अगर नहीं मिले तो मेरे पास आओ, मैं तुम्हें यह विधि दे सकता हूं। जब मनुष्य को अपने अंदर स्थित परमात्मा का अनुभव होता है तो उसमें जो आनंद मिलता है, वैसा आनंद इस संसार में किसी चीज में नहीं मिल सकता।

पर यह कैसी अजीब बात है कि जिस भगवान के नाम को जपने से आदमी को शांति मिलनी चाहिए और मानवता का अहसास होना चाहिए, उसी भगवान के नाम पर लोग एक-दूसरे को मारने के लिए तैयार हो जाते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। मानवता यही है कि मैं तुम्हारे खोट और तुम्हारे अवगुणों को नहीं देखूं। मैं तुम्हारी अच्छाइयां देखूं। तभी हम अपने अंदर स्थित परमानंद का अनुभव कर पाएंगे और सचमुच की संतुष्टि प्राप्त कर सकेंगे। 

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