गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011

हिन्दू हिन्दू नहीं रहा, क्यों …….?


By Rakesh Bhartiya
शीर्षक पढ़कर यूँ ही वैचारिक उलझावों का शिकार न होना दोस्तों ! यहाँ मैं सभी को स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मैं एक हिन्दू धर्म से सम्बंधित वो इंसान हूँ जिसने अपने नाम के पीछे भारतीय जोड़ा अर्थात कुल मिलाकर कहूँ तो मैं कोई और नहीं बल्कि आप ही के समाज का एक अभिन्न हिस्सा हूँ जिसका उंगलिया उठाना ही ध्येय नहीं हैं l इसका अपना भी एक उद्देश्य तथा सार हैं जिसके चलते सार से तो आप वाकिफ मेरे लेखो (जागरण जंक्शन की वेब साईट) या वर्ल्ड प्रेस की ब्लाग साईट पर स्थानित लेखो को पढ़कर लगा लोगे लेकिन उद्देश्य से शायद ही वाकिफ हो सको l समय बेहद कीमती हैं और व्यर्थ में समय गवाने की बजाए इस लेखाकार के संक्षिप्त विस्तार को पढ़े कि आख़िरकार वो कहना क्या चाहता हैं और ऐसा उसने क्यों किया…………….?
दोस्तों ! व्यक्तिगत भावनाओं के आधार पर बेशक मैंने ऐसा लिखने की जहमत उठाई लेकिन एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मेरा उद्देश्य क्या हैं और क्या होगा…………. जिसे आप समझेंगे तो जरुर लेकिन कब ………….? शायद अपनी पुरानी आदत के चलते मरने के बाद, जिसकी मुझे कोई परवाह नहीं लेकिन दोस्तों मैं इतिहास में तो विश्वाश करता हूँ लेकिन प्रयास को ज्यादा एहमियत देता हूँ क्योंकि मैं यह जान चुका हूँ कि अच्छे तथा व्यवस्थित कर्मो का क्या महत्व हैं l
भाईओं, ईश्वर ने हमें वो न्यायिक क्षमता तथा साहस बख्शा हैं कि अगर हम चाहे तो अब तक अपने लिखित इतिहास को भी पलट सकते हैं सो आइये एक कोशिश करके देखे l सबसे पहले ये सोचिये कि आप हैं कौन, आपका उद्देश्य क्या हैं और इस भौतिक जगत से क्या नाता हैं तथा इस भौतिक आधार और आत्मा रूपी वायु प्राण के प्रति आपके क्या नैतिक कर्तव्य होने चाहिए…..? यह अगर उलझाव लगे तो इससे बेहतर और आसान कोई रास्ता नहीं हैं इसके लिए सबसे पहले अपनी इस बूढी हुई समझ चुके उस सोच के गर्भ में जाकर देखे तो सही की वाकई ये इतनी बूढी हो चुकी हैं जितनी की इसकी यथास्थिति दर्शा रही हैं आप के विचार जो भी बने लेकिन मुझे ये बूढी नहीं बल्कि निराशावादी साहस विहीन लग रही हैं अगर किसी को किसी भी किस्म का शक हो तो चाहे इतिहास का मूल्यांकन उन आधारों पर कर के देख ले जिनका एक ही सार उनके संतुलन को अब तक कायम रखे हुए हैं आपको खुद भी पता चल जाएगा कि आपके वास्तविक समाजिक स्थिति क्या हैं यकीन न हो तो प्रयास करके देख ले आपको अपनी कमियां खुद-ब-खुद पता चल जायेंगी l
आप कुछ भी कहे लेकिन सच तो यह हैं दोस्तों कि आज हम गुमराहपन चकाचौंध से प्रभावित हुए ऐसे हिन्दू बन चुके हैं जो आशावादी सोच को छोड़कर निराशावाद से उपजी हीन भावना की मज़बूरी को अपने हिन्दुत्व की बोझ ढोती इच्छा को अपनी मानसिकता में स्थान दे बैठे हैं l कुल मिलाकर कहूँ तो हम निराशावादी सोच को अपनाये हुए ऐसे हिन्दू बनते जा रहे हैं जिन्हें अपने भविष्य का भी नहीं पता कि वे किस समाजिक उद्देश्य की तरफ बढ़ रहे हैं आपकी राय बेशक मतभेद भरी हों लेकिन अगर इसका कोई जवाब हैं तो वह हैं बिखराव की ओर ……l यकीन नहीं तो फिर जन्म से लेकर मरण तक अपने आप में उलझे रहना कहाँ तक ओर कैसे, क्यों उचित हैं ……..? अपने हिन्दू समाज में घूमकर देख ले दूध का दूध ओर पानी का पानी होते देर न लगेगी, कोई बेशक कितने भी दावे करे लेकिन मैंने तो कुछ ही मानसिकताए ऐसी देखी हैं जिन्होंने समाज में फैली बुराइयों का विरोध किया है और अलौकिक शक्ति पुंज की व्याख्या की l
ये इनका सौभाग्य था कि उस समय तक नैतिकता काफी हद तक कायम थी लेकिन आज फैली अनैतिकता को देख तो हर हिन्दू रहा हैं लेकिन आज वो जान बूझ कर अपनी कमियों को समाज को बताना ही नहीं चाहता क्योंकि सभी को डर हैं विशेष तौर से भौतिक आधार की चिंता के बेखौफ से उत्साहित वर्ग को सबसे ज्यादा डर हैं कि कहीं उसकी पौल न खुल जाए l
भ्रष्ठाचार कभी एक व्यक्ति नहीं फैला सकता इसके लिए दूसरों के समर्थन कि भी हमेशा जरुरत रहती हैं और रहेगी भी क्योंकि मनुष्य कि प्रवर्ती जो समाजिक हैं l भीड़ में सभी हैं शामिल अगर तलाश कर सको तो बेगाना चेहरा तलाश करके देखना ईक्का-दुक्का जरुर मिल जायंगे लेकिन अधिकतर अपने ही हिन्दुत्व के बोझ के भार को भूल बैठे वो चेहरे देखंगे जिनको देखने पर लगेगा की देखे हुए से तो हैं जरुर l दोस्तों ये और कोई नहीं हमारे ही समाज में एक झंडे के नीचे पले-बढे वो लालची मानवीय रूप में कुत्तों के झुण्ड के समान हैं जो अपनी लार टपकती जिव्हा को नियंत्रण में न कर सकने के चलते जिन्होंने अपने भारतीय स्वाभिमान का सौदा करने में भी कोई शर्म नहीं बरती ये राष्ट्रीय आर्थिक तथा नैतिक विद्रोह सरे-आम कर रहे हैं और जिसे भला कौन नहीं देख रहा हैं, दोस्तों मैं क्या आप सभी हिन्दू भी देख रहे हैं और इसके अत्याचार यूँ ही सहन भी कर रहे हैं l ये तो मजबूर हैं अपनी गुमराह सोच से फिर आपको कौन सी मज़बूरी आ पड़ी हैं जो आप चुप हों l
आर्थिक द्रोह सरे आम यूँ सामने आ रहे हैं क्योंकि इनको अंजाम देने वाले सभी जानते हैं कि भारतीय संविधान में सख्त सजा का कानून हैं ही नहीं l बेरोजगार और ईमानदार वर्ग के चिल्लाने का भी इन्हें खौफ इसलिए नहीं हैं क्योंकि इन्हें इसका भी ज्ञान हैं कि आज भारतीय लोकतंत्र की रगों में पैसे का वो भौतिक सुखो से भरपूर खून बहने लगा है जो कि ईमान के आधार को भी डगमगाने की अधूरी क्षमता रखता हैं l ज्यादातर आर्थिक द्रोहों में संलिप्त वो राजनीति से जुड़े नुमाइनदे हैं जो हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रन्थ “भगवत गीता” पर हाँथ रख कर देश के प्रति अपनी जिम्मेवारियों को निभाने की कसम खा कर अपने राजनीति करियर की शुरुआत करते हैं l जिन्हें देखकर एक ही शब्द ध्यान में आता हैं वो हैं शर्मनांक है ये और इनकी सोच l शर्मनाक तो आपका फलसफा तो आप भी हैं जो इनके दोषों के आकलन के विस्तार में तह तक जाने की कोशिश करते हों और बहस-बसाई में यूँ ही कीमती समय दोष रोपण-प्रत्यारोपण प्रक्रिया में व्यर्थ गवां देते हों l

दोस्तों इस समाज के पहरेदार बनो और कोई भी शोषण करती हुई अनैतिक सोच मिले उसे सीमित पूछताछ करके उसकी सारी संपत्ति कुड़क करके इसी समाज के सामने चौंक (चौराहे) पर खड़े करके ऐसी सजा दे जोकि भविष्य के लिए खौफ की ऐसी मिसाल बन जाए जिसका प्रभाव सभी के नैतिकता के दायरे में बांधे रख सके l शारीरिक शोषण करते बलात्कारियों के साथ भी यहीं सजा लागू करनी चाहिए, जहर बेचने वालों अर्थात मिलावट करने वालों को मानवता के हत्या के आरोप में ऐसी ही सजा देनी चाहिए बाकी चिकित्सक वर्ग और उससे सम्बंधित व्यवसायी वर्ग को भी नहीं बख्शा जाना चाहिए जो दलाली कमाने के चक्कर में उन दवाइयों को केमिस्ट को बेचने में मदद करवाते हैं जिनके वास्तविक दाम और प्रिंट दाम में दिन रात का अंतर होता हैं ये भी एक राष्ट्रीय द्रोह हैं जिसमे रोगी की आर्थिक क्षमता का भी खुल कर बलात्कार किया जाता हैं l इनको आवासीय घरों में अपनी दुकान चलाने की मान्यता देना कहाँ तक और क्यों उचित हैं…………?
क्या आम जन तक भारतीय सरकार स्वास्थ्य सुविधा पहुंचा चुकी हैं अगर वाकई हकीकत यहीं होती तो कुछ हद तक यह उचित रहता लेकिन धन्य हैं आपकी विकसित सोच का जिसका क्या कहना जिसकी आंधी में उड़कर आज आम जन (आर्थिक कमजोर वर्ग) सरकारी हस्पताल की कतारों में खड़े बेहतर ईलाज के लिए मोहताज हैं l व्यापारी वर्ग को भी इतनी खुली मान्यता दी गयी, क्या यह आर्थिक द्रोह नहीं हैं……..? हाँ दोस्तों ! बिलकुल यह भी एक खुला शोषण हैं जोकि आज समाज में फैले असमाजिक असंतोष का सबसे बड़ा कारण बन बैठा हैं जिसका दोष केवल भारतीय खून चूसने वाली राजनीति को ही देना उचित हैं बाकी प्रशासनिक वर्ग भी औसतन भौतिक सुखो को अपने सीमा क्षेत्र में समेटे हुए पैसे से पैदा हुए दंभ से प्रभावित हो चुका है l बाकी रही कम संख्या में बचे ईमानदार वर्ग की बात उसे तो पहले से ही आजतक आज बेवकूफ ही समझा जाता हैं l
दूसरी तरफ धर्म गुरुओं या धर्म प्रसारकों को भी देख ले जो रचनाकार और उसकी रचना में बेवजह एहमियत पाए ऐसे इन्सान बन बैठे हैं जो चाहते ही नहीं हैं कि मनुष्य अर्थात उनका अनुयायी वर्ग उनके प्रभाव क्षेत्र से बहार झांक कर देख सके दोस्तों ! मैंने तो यहीं देखा और महसूस किया जो मैंने लिखा l इसके साथ-साथ यहाँ ऐसी भी मानसिकताए मिल जाएँगी जोकि व्यर्थ में हिन्दुत्व का दावा करती पाएंगी मानो उन्हें हिन्दू धर्म में मानी जानी वाली पवित्र गाय कूड़े के ढेर में मुह मारती दिखाई ही नहीं दे रही हों धन्य हैं इनका हिंदुत्तव जो इतने बड़े आकर लिए पशु को नहीं देख पा रहा इनसे और क्या उम्मीद करोगे बालश्रम के बोझ से दबे कचरा बीनते बच्चे तो कैसे दिखाई देंगे l
शोषण हर जगह हैं कहीं आर्थिक शोषण हैं तो कहीं शारीरिक, कहीं आर्थिक द्रोह हैं तो कहीं मानसिक प्रताड़ना यकीन नहीं हो तो जात-पात भेदभाव, बेरोजगारी, शारीरिक विभिन्नता, भ्रूण हत्या, आर्थिक प्रताड़ना, जहर बेचती मानसिकताए, हत्या, डकैती, सब कुछ तो हैं आप के इस हिन्दूतव के बोझ से बोझिल हुए समाज में जहाँ ढूंढने पर भी आपका अवसरवादी हिन्दुत्व नजर नहीं आता, अवसरवादी मुझे यूँ लगा क्योंकि राजनितिक सरगर्मियों के आते ही यह अपने बिल में से निकल कर बाहर आ जाता हैं बाकी हर समय यह हमारे बीच इस हिन्दू समाज में इसलिए नहीं रहता क्योंकि इसको भी शर्म आती हैं दोस्तों ! यहीं हैं हिन्दुत्व का आपका दावा तो कहाँ गए आपकी सोच से नदारद हुए हिन्दू धर्म के सार जिनके दम पर आज तक यूँ ही हिन्दू धर्म का संरक्षक होने का दावा करते आये हैं l
शर्म की बात तो अब और उठ खड़ी हुई जब माता वैष्णो रानी और अमरनाथ जैसे पवित्र स्थलों पर विदेशी आतंकियों ने हमले करने के नापाक इरादों को जाहिर किया और हमारा हिन्दुत्व का दावा ठोकते हिन्दू खामोश रहे सुनते रहे वाकई इस बात से जाहिर होता हैं कि हिन्दुत्व के बोझ से बोझिल हिन्दू आप कितने स्वार्थी हो चुके हो जो सब कुछ देख कर और सुनकर भी चुप हैं अरे दोस्तों जिसने ताउम्र हमें अध्यात्मिक आशीर्वाद दिया उनकी हिफाज़त के समय हमारी घिघी बंध गयी l सच तो यह हैं की राजनितिक चुनावी सर्गार्मियाँ आते ही आपका हिन्दुत्व विशेष तौर पर B.J.P. और बाल ठाकरे का हिन्दुत्व वो भाषा बोलने लग जाता हैं जिसका इस धर्म में कहीं भी उल्लेख नहीं हैं l
दोस्तों अगर यहीं आपका और इनका हिन्दुत्व हैं तो मैं आपसे पूछता हूँ की ये हिन्दुत्व जिसका आधार जन कल्याण के उद्देश्य को छोड़कर आज अवसरवादी क्यों बन चुका हैं अगर आपके पास जवाब हैं तो दीजिये ध्यान दीजिये पूछने वाला भी एक हिन्दू हैं जिसने वो साहस किया जिसको आज तक ये हिन्दुत्व ही क़त्ल करता आया हैं l
मेरी अपील हैं कि शोषित तथा ईमानदार साहसी देशभक्ति की भावना से प्रेरित हिन्दू अपने आपको इस लेख के दायरे से बाहर समझे
Thanks to all
Rakesh Bhartiya
Bhartiya1674@gmail.com

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