बुधवार, 12 अक्तूबर 2011

सप्तर्षि



सप्तर्षि-मण्डल आकाश में सुप्रसिद्ध ज्योतिर्मण्डलों में है। इसके अधिष्ठाता ऋषिगण लोक में ज्ञान-परम्परा को सुरक्षित रखते हैं। अधिकारी जिज्ञासु को प्रत्यक्ष या परोक्ष, जैसा वह अधिकारी हो, तत्त्वज्ञान की ओर उन्मुख करके मुक्ति-पथ में लगाते हैं। इन ऋषियों में से सब कल्पान्त-चिरजीवी, मुक्तात्मा और दिव्यदेहधारी हैं। इसके अतिरिक्त सप्तऋषि से उन सात तारों का बोध होता है, जो ध्रुवतारा की परिक्रमा करते हैं। प्रत्येक मन्वन्तर में इनमें से कुछ ऋषि परिवर्तित होते रहते हैं। विष्णु पुराण के अनुसार इनकी नामावली इस प्रकार है: 
  • प्रथम स्वायम्भुव मन्वन्तर में: मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु और वशिष्ठ।
  • द्वितीय स्वारोचिष मन्वन्तर में: ऊर्ज्ज, स्तम्भ, वात, प्राण, पृषभ, निरय और परीवान।
  • तृतीय उत्तम मन्वन्तर में: महर्षि वशिष्ठ के सातों पुत्र।
  • चतुर्थ तामस मन्वन्तर में: ज्योतिर्धामा, पृथु, काव्य, चैत्र, अग्नि, वनक और पीवर।
  • पंचम रैवत मन्वन्तर में: हिरण्यरोमा, वेदश्री, ऊर्ध्वबाहु, वेदबाहु, सुधामा, पर्जन्य और महामुनि।
  • षष्ठ चाक्षुष मन्वन्तर में: सुमेधा, विरजा, हविष्मान, उतम, मधु, अतिनामा और सहिष्णु।
  • वर्तमान सप्तम वैवस्वत मन्वन्तर में: कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और भारद्वाज।
  • अष्टम सावर्णिक मन्वन्तर में: गालव, दीप्तिमान, परशुराम, अश्वत्थामा, कृप, ऋष्यश्रृंग और व्यास।
  • नवम दक्षसावर्णि मन्वन्तर में: मेधातिथि, वसु, सत्य, ज्योतिष्मान, द्युतिमान, सबन और भव्य।
  • दशम ब्रह्मसावर्णि मन्वन्तर में: तपोमूर्ति, हविष्मान, सुकृत, सत्य, नाभाग, अप्रतिमौजा और सत्यकेतु।
  • एकादश धर्मसावर्णि मन्वन्तर में: वपुष्मान्, घृणि, आरूणि, नि:स्वर, हविष्मान्, अनघ, और अग्नितेजा।
  • द्वादश रुद्रसावर्णि मन्वन्तर में: तपोद्युति, तपस्वी, सुतपा, तपोमूर्ति, तपोनिधि, तपोरति और तपोधृति।
  • त्रयोदश देवसावर्णि मन्वन्तर में: धृतिमान्, अव्यय, तत्त्वदर्शी, निरूत्सुक, निर्मोह, सुतपा और निष्प्रकम्प।
  • चतुर्दश इन्द्रसावर्णि मन्वन्तर में: अग्नीध्र, अग्नि, बाहु, शुचि, युक्त, मागध, शुक्र और अजित।।
  • 'शतपथ ब्राह्मण' के अनुसार: गौतम, भारद्वाज, विश्वामित्र, जमदग्नि, वसिष्ठ, कश्यप और अत्रि.
  • 'महाभारत' के अनुसार: मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलह, क्रतु, पुलस्त्य और वसिष्ठ.

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