सोमवार, 17 अक्तूबर 2011

बौद्ध धर्म और सनातन धर्म


बौद्ध धर्म और सनातन धर्म


इसे विडंबना कहें या सनातन धर्म की पचाने की क्षमता, जो भी धर्म या आंदोलन इसकी बुराइयों से निपटने के लिए शुरू हुए, वे भी इसके ही रंग में ही ढल गए. जो भी इसके विरोध में किया गया, कालांतर में वही ठीक सनातनी कलेवर में रंग गया. यही बात बौद्ध धर्म के साथ भी लागू होती है. जाति-व्यवस्था और ढकोसलों के ख़िला़फ ही इसकी शुरुआत हुई, लेकिन बाद में चलकर बौद्ध धर्म में भी वही सारे विकार आ गए. जाति-प्रथा बौद्ध धर्म में भी लागू रही, बस शीर्ष पर ब्राह्मण की जगह क्षत्रिय विराजमान हो गया.
बुद्ध ने अवतार की, मूर्तिपूजा की और पुनर्जन्म वगैरह को सिरे से नकार दिया था, लेकिन बौद्ध धर्म की महायान शाखा में तो देवताओं की लड़ी ही लग गई. बुद्ध को अवतार घोषित कर दिया गया और बड़ी-बड़ी मूर्तियां मठों में स्थापित कर मूर्ति पूजा भी होने लगी. बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा में तो इतनी गंदगी हुई, कि लोग वज्रयानियों को कापालिकों से भी बुरा समझने लगे. ख़ैर, इस पर चर्चा फिर कभी.
कुल मिलाकर इतना ही कि बुद्ध की यह बात लगभग सही सिद्ध हो गई जो उन्होंने आनंद से कही थी. मठों में भिक्षुणियों को शामिल होने की इजाज़त देते हुए बुद्ध ने कहा था- आनंद, पहले यह धर्म शायद 5000 वर्षों तक चलता, लेकिन अब तो यह केवल 500 साल चलेगा, क्योंकि धर्म में भिक्षुणियों को भी आज्ञा मिल गई है. हालांकि बौद्ध धर्म के कालबाह्य होने के पीछे कई कारण थे. बौद्ध धर्म में शुरू से ही तीन मार्ग थे. अर्हत-यान का पालन वे श्रावक करते थे, जिनका लक्ष्य अपना मोक्ष होता था. इसके अलावा जो साधक या श्रावक अपने साथ ही कुछ और लोगों के लिए भी कष्ट सहने को तैयार थे, उनका रास्ता प्रत्येक-बुद्ध-यान था. तीसरा और सबसे कठिन रास्ता बुद्ध-यान का था, जिसपर
बुद्ध-यान का था, जिसपर वही साधक चलता था, जो तमाम जीवों का मार्गदर्शक बनने के लिए अपनी मुक्ति और मोक्ष की ़िफक्र न कर बहुत कष्ट और परिश्रम के बाद ही स्वयं प्राप्त निर्वाण को अपना लक्ष्य मानते थे. आरंभ में तो सभी बौद्ध तीनों यान को मानते थे, लेकिन कालांतर में बौद्ध धर्म का विभाजन इन्हीं के आधार पर हीनयान और महायान में हुआ. कालक्रम में बुद्धयान निःस्वार्थ यान होने के कारण ही महायान कहा जाने लगा जबकि बाक़ी दोनों यानों को हीनयान कहा जाने लगा.
इसके बाद सनातन धर्म का प्रभाव बौद्ध धर्म पर भी पड़ा. मानव स्वभाव मूल रूप से साकार को खोजता है, निराकार से वह ख़ुद को जोड़ नहीं पाता. यही वजह रही कि बाद में बुद्ध की भी विशाल मूर्तियां बनने लगीं और बाक़ायदा उनकी पूजा की जाने लगी. अंधविश्वास और रूढ़ियों का भी बौद्ध धर्म में प्रवेश हो गया और वज्रयान संप्रदाय तो बौद्ध धर्म का सबसे बड़ा कलंक बन गया. भिक्षुणियों के आगमन से नारी-समागम की भी शुरुआत हो गई और मुद्रा के नाम पर कई तरह के अनाचार बौद्ध धर्म का भी हिस्सा बन गए. महायान का हालांकि ऐतिहासिक महत्व इस वजह से है क्योंकि करुणा और मैत्री का शिखर हम महायान में देखते हैं, ठीक उसी तरह जैसे, अहिंसा का चरम विकास हम जैन धर्म के अनेकांत दर्शन में देखते हैं. बाद में तो ख़ैर बौद्ध धर्म में पुनर्जन्म की अवधारणा भी आ गई और इस पर शाक्त प्रभाव भी पड़ा. अवतारवाद की धारणा भी बौद्ध धर्म का हिस्सा बन गई. इसी वजह से बोधिसत्वों का भी उल्लेख होने लगा. 

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