मंगलवार, 11 अक्तूबर 2011

मैं हिन्दू क्यों हूँ ?






मैं हिन्दू क्यों हूँ ?
मै हिन्दू इसलिए नहीं हूँ की मैंने एक हिन्दू परिवार में जन्म लिया है.जैसा की हमारा राष्ट्र भारत एक लोकतान्त्रिक देश है.यहाँ सभी को अपना धर्म मानने का अधिकार है.कोई भी भी अपना धर्म परिवर्तन कर सकता है.इसके वावजूद मै एक हिन्दू हूँ या हिन्दू धर्म के प्रति मेरा बहुत लगाव है इसका कारण मै आप लोगों के सामने बताना चाहूँगा-
१.हिन्दू धर्म दुनिया का सबसे पुराना धर्म है.
२.हिन्दू धर्म एक मात्र धर्म है जिसने वसुधैव कुटुम्बकम का नारा दिया और बताया की सरे लोग एक हैं चाहे वे ईश्वर की पूजा जिस भी रूप में कर रहे हों.
३.हिन्दू धर्म दुनिया का एक मात्र धर्म है जिसमे धर्मावलम्बी बनाने का प्रावधान नहीं है.सनातन धर्म का मानना है की दुनिया में केवल २ तरह के लोग रहते है आस्तिक और नास्तिक.जो ईश्वर की सत्ता पर विश्वास करते हैं,चाहे वो उनकी जिस रूप में भी पूजा करते हों,वो हिन्दू हैं.
४.हिन्दू धर्म कभी भी नहीं सिखाता की "हमारे कौम को मानने वालों के आलावा सभी काफ़िर हैं.अगर वो हमारा कौम नहीं कुबूल करते तो उनका गला काट लो."
५.वेद दुनिया की सबसे पुराणी पुस्तके हैं जो हिन्दू धर्म से सम्बंधित हैं,इससे पता चलता है की जब लोग जंगलों में रहते थे तब भी हमारे यहाँ वेदों के मंत्र गुजां करते थे.
६.हिन्दू धर्म एक मात्र धर्म है जो हर चीज़ में ईश्वर की उपस्थिति मानता है इसलिए हम हर कंकड़ को शंकर,नदिओं को माता और पहाड़ों को पिता के समान पूजते हैं.
७.हिन्दू धर्म कभी नहीं सिखाता की दूसरों के धर्मस्थान तोड़कर अपना धर्मस्थान बनाने पर जन्नत नसीब होती है.
८.हिन्दू धर्म कभी नहीं सिखाता की अपने धर्म को छोड़कर दूसरे धर्मवालों से कर लेना हमारा अधिकार है.
९.सारी दुनिया का शाशन चाहे वो लोकतान्त्रिक हो,राज शाही हो या बामपंथी हो.वो हिन्दू धर्म के हिसाब से ही चलता है.जैसे जल के देवता-वरुण,धन के देवता-कुबेर,न्याय के देवता-धर्मराज उसी तरह हमारे यहाँ अलग-अलग मंत्रालय होते हैं.



मै हिन्दू हूँ
मै हिन्दू हूँ , मुझे गर्व है आदि सनातन धर्म का अनुयाई होने पर , मुझे गर्व है की मै विश्व की सबसे उदार , सहनशील और मात्रत्व भावः से विश्व बंधुत्व और हर प्राणी के हित की बात करने वाली इस महान सभ्यता का निवासी हूँ , और इस पर गर्व करते वक्त मुझे बिलकुल भी भय नहीं है कोई मुझे साम्प्रेदायिक कहै या संकुचित . मै हिन्दू हूँ ,
ताजुब होता है ना ,जब कोई इस धर्म को हिन्दू , सनातन , वैदिक या और किसी नाम से पुकारता है , यही से इसकी खूबसूरती चालु होती है , किसी भी धार्मिक पुस्तक मे हिन्दू शब्द भी नहीं है , फिर भी ये धर्म हिन्दू के नाम से जाना जाता है , कभी सिन्धु के पार रहने वालो को हिन्दू कहा जाता था और कभी क्या , कुछ सालो पहले तक हर भारतवासी को हिन्दू के नाम से ही जाना जाता था , ये वो परंपरा है जिस का नामकरण इस भूभाग से हुआ है , ये वो धर्म है जहाँ धर्म का अर्थ कर्त्तव्य पालन से है .
मै जानता और मानता भी हूँ की मेरे धर्म मे काफी बूराइया भी प्रवेश कर गई है , फिर भी मै गर्व करता हूँ की मै हिन्दू हूँ , मेरा धर्म अपनी बुराइयों पर चर्चा करने उन पर प्रश्न उठाने और उन्हे दूर करने का प्रयास करने की भी इजाजत देता है ,हाँ यहाँ मेरा मत बड़ा स्पष्ट है की ये बूराइया मूल धर्म मै नहीं बल्कि समय के साथ इसमे शामिल हुई है ( आगे की कडियों मे मै इस पर भी आऊंगा )
धर्म की सीधी सी परिभाषा है अपने कर्तव्यो की पालना , एक संतान के लिये माँ और पिता , एक विद्यार्थी के लिये गुरु , राजा के लिये देश और प्रजा किसी भी ईश्वरीय आराधना से पहले माने गये है , यदि हम अपने मूल कर्तव्यों की ही पालना करलें तो भी हिन्दू धर्म के अनुयाई के रूप मे हम चल सकते हैं .
ये मेरा धर्म कला , विज्ञान , स्वास्थ्य , गीत - गायन , शस्त्र विद्या ,नगर स्थापत्य , जैसे विभिन् गुणों और मानव विचार की हजारो विचारधाराओ को अपनी गोद मे फलने फूलने का मोका देता है
ये बहु देव , बहु पुस्तक , बहु विचारधारा का धर्म माना जाता है ,, काफी लोग इस पर इस धर्म की आलोचना भी करते है .. पर मे इसे जीवंत धर्म का सबसे बड़ा प्रमाण मानता हूँ , धर्म की साधना का मतलब इश्वर तक पहुचना है और मेरे धर्म का मत है की वो परमसत्ता इतनी उदार , विशाल ह्रदय है की जिस नाम से , जिस विधि से , जिस रूप मे हम उस को पुकारे वो हम को अपना लेता है , वो इतना निरंकुश या तानाशाह नहीं है अपने एक ही नाम , एक ही भाषा , एक ही विधि से हमारी पुकार सुनता हो , मै चाहूँ तो निराकार या साकार रूप मै , पुरुष रूप मै या स्त्री रूप मै , जीवंत गुरु या ग्रन्थ गुरु रूप मै , प्रकर्ति मे या ध्यान , मे उस परमपिता को पुकार सकता हूँ , माध्यम चाहे विधिविधान से पूजा हो , तप हो , गीत हो संगीत हो या मात्र अपने मूल कर्तव्यो की पालना हो ..
इसी लिये ये सनातन है , आदि अनादी है और जीवन्त धर्म है .
(ये लेख मेरे ब्लॉग पर भी है , इस को लेकर यहाँ आना पड़ा कुंकी यहाँ का माहोल एक अलग ही दिशा मे जा रहा है )

maihindu.blogspot.com

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