सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

वेद करते हैं हमारा मार्गदर्शन



प्रस्तुति : आचार्य गोविन्द बल्लभ जोशी 
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जिस प्रकार ईश्वर अनादि, अनंत और अविनाशी है, उसी प्रकार वेद ज्ञान भी अनादि, अनंत और अविनाशी है। उपनिषदों में वेदों को परमात्मा का निःश्वास कहा गया है। वेद मानव मात्र का मार्गदर्शन करते हैं। 

वेदों के प्रादुर्भाव के संबंध में यद्यपि कुछ पाश्चात्य विद्वानों तथा पाश्चात्य दृष्टिकोण से प्रभावित भारत के कुछ विद्वानों ने भी वेदों का समय-निर्धारण करने का असफल प्रयास किया है परंतु प्राचीन काल से हमारे ऋषि-महर्षि, आचार्य तथा भारतीय संस्कृति एवं भारत की परंपरा में आस्था रखने वाले विद्वानों ने वेदों को सनातन, नित्य और अपौरुषेय माना है। 

उनकी मान्यता है कि वेदों का प्रादुर्भाव ईश्वरीय ज्ञान के रूप में हुआ है। जिस प्रकार ईश्वर अनादि, अनंत और अविनाशी है। उसी प्रकार वेद ज्ञान भी अनादि, अनंत और अविनाशी है। उपनिषदों में वेदों को परमात्मा का निःश्वास कहा गया है। 

वैदिक का प्रकाश सृष्टि के आरंभ में समय के साथ उत्कृष्ट आचार-विचार वाले, शुद्ध और सात्विक, शांत-चित्तवाले, जन-जीवन का नेतृत्व करने वाले, आध्यात्मिक और शक्ति संपन्न ऋषियों को ध्यानावस्था में हुआ। ऋषि वेदों के कर्ता न होकर दृष्टा थे। उनके हृदय में जिन सत्यों का जिस रूप और भाषा में प्रकाश हुआ, उसी रूप एवं भाषा में उन्होंने दूसरों को सुनाया। इसीलिए वेदों को श्रुति भी कहते हैं। 

वेदों की मुख्य विशेषता यह है कि वेद सर्वकालीन सर्व देशीय तथा सार्वभौमिक तथा सर्व उपयोगी हैं। ये किसी विशेष व्यक्ति, जाति, देश तथा किसी विशेष काल के लिए नहीं है। वेदों में जो विषय प्रतिपादित हैं, वे मानव मात्र का मार्गदर्शन करते हैं। मनुष्य को जन्म से लेकर मृत्युपर्यंत प्रतिक्षण कब क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, साथ ही प्रातः काल जागरण से रात्रि शयन पर्यंत संपूर्ण दिनचर्या और क्रिया-कलाप ही वेदों के प्रतिपाद्य विषय हैं। 

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पुनर्जन्म का प्रतिपादन, आत्मोन्नति के लिए वर्णाश्रम की व्यवस्था तथा जीवन की पवित्रता के निमित्त भक्ष्य-अभक्ष्य पदार्थों का निर्णय करना वेदों की मुख्य व्यवस्था है। कर्मकांड, उपासनाकांड और ज्ञानकांड इन तीनों विषयों का वर्णन मुख्यतः वेदों में मिलता है। वेदों का प्रधान लक्ष्य आध्यात्मिक और सांसारिक ज्ञान देना है, जिससे प्राणिमात्र इस असार संसार के बंधनों के मूलभूत कारणों को समझकर दुखों से मुक्ति पा सके। 

वेदों में कर्मकांड और ज्ञानकांड दोनों विषयों का सर्वांगीण निरूपण किया गया है। वेदों का प्रारंभिक भाग कर्मकांड है और वह ज्ञानकांड वाले भाग से बहुत अधिक है। कर्मकांड में यज्ञ अनुष्ठान संबंधी विधि आदि का सर्वांगीण विवेचन है। इस भाग का प्रधान उपयोग यज्ञ अनुष्ठान में होता है। 

वेदों की अपौरुषेयता और का प्रतिपादन करते हुए महर्षि अरविंद ने उन्हें श्रेय स्वीकार किया है। भारतवर्ष और विश्व का विकास इनमें निहित ज्ञान के प्रयोग पर निर्भर करता है। वेदों का उपयोग जीवन के परित्याग में नहीं, प्रत्युत संसार में जीवनयापन के लिए है। 

हम जो आज हैं और भविष्य में जो होना चाहते हैं उन सभी के पीछे हमारे चिंतन के अभ्यंतर में हमारे दर्शनों के उद्गम वेद ही हैं। यह कहना उचित नहीं कि वेदों का सनातन ज्ञान हमारे लिए सहज मार्ग की प्राप्ति के लिए अति दुरूह और भटकने जैसा है। हां इनको समझने के लिए गहन अध्ययन की आवश्यकता है।

मनुष्य पाप क्यों करता है?


Arjuna Krishna,
ND

एक बार अर्जुन ने भगवान से पूछा - मनुष्य न चाहते हुए भी क्यों पाप करता है और पाप का फल भोगने के लिए नरकों में जेल में 84 लाख योनियों में जाता है। 

भगवान ने उत्तर दिया- कामना मनुष्य से पाप कराती है और कामना से उत्पन्न होने वाला क्रोध और लोभ यही मनुष्य को पाप में लगाते हैं ओर पाप से दुखी होता है, दुर्गति में जाता है।

मनुष्य के मन में, इंद्रियों में बुद्धि में, अहम में और विषयों में कामना का वास होता है। कामना ही मनुष्य की बैरी है, पतन का कारण है। ज्ञान रूपी तलवार से इसका भेदन करना चाहिए। मनुष्य के कर्म, बंधन का कारण बनते हैं। लेकिन वही कर्म दूसरों के हित के लिए किए जाते हैं तो मुक्त करने वाले बन जाते हैं। अपने लिए करें, स्वार्थ से करें, कामना से करें, तो वहीं कर्मबंधन है आफत है, भोग है और दूसरों के लिए करें, निष्काम भाव से करें, प्रेम से करें तो वही कर्म मुक्ति का, आनंद का, योग का कारण बनते है।

दूसरों के लिए कर्म करना ही यज्ञ है, गीता में अनेक प्रकार के यज्ञ बताए गए हैं। दूसरों के हित में समय, संपत्ति साधन लगाना द्रव्य यज्ञ है, परमात्मा की प्राप्ति के उद्वेश्य से योग करना योग यज्ञ है। इंद्रियों का संयम करना संयम यज्ञ है, भगवान के शरण होना भक्ति यज्ञ है। शरीर से असंग हो जाना, अपने आपको जानना ज्ञान यज्ञ है। जो सारे यज्ञों में सर्वश्रेष्ठ है। 

क्योंकि इससे सब कर सकते हैं और इसमें कोई खर्चा भी नहीं है। यह मुक्ति का सीधा मार्ग है सत्संग से जो विवेक प्राप्त होता है। वो विवेक ही इस यज्ञ की सामग्री है। श्रद्वा उत्कर्ष अभिलाषा, इंद्रिय संयम इस यज्ञ के उपकरण हैं। हमें ज्ञान यज्ञ में अपनी कामनाओं की आहुति डालकर जीवन मुक्ति का फल प्राप्त करना है।

जागो हिन्दू


जागो हिन्दू

Posted by amitabhtri 
वैसे तो पिछले डेढ़ वर्ष से केन्द्र में सत्तारूढ़ होने  के बाद से संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन ने एक के बाद एक मुस्लिम तुष्टीकरण के ऐसे कदम उठाये हैं जो पिछले सारे रिकार्ड धवस्त करते हैं. पिछले वर्ष दो निजी टेलीविजन के साथ साक्षात्कार में कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी ने स्वीकार किया था कि मुसलमान कांग्रेस के स्वाभाविक मित्र हैं और उन्हें अपने पाले में वापस लाने का पूरा प्रयास किया जायेगा. यह इस बात का संकेत था कि मुसलमानों को कुछ और विशेषाधिकार दिये जायेंगे.
                 इसी बीच  केन्द्र सरकार ने सेवा निवृत्त न्यायाधीश राजेन्द्र सच्चर की अध्यक्षता में एक आयोग बनाकर समाज के प्रत्येक क्षेत्र में मुसलमानों की सामाजिक व आर्थिक स्थिति का आकलन करने का निर्णय लिया. सेना में मुसलमानों की गिनती सम्बन्धी आदेश को लेकर उठे विवाद के बाद उस निर्णय को तो टाल दिया गया परन्तु न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका में मुस्लिम भागीदारी का सर्वेक्षण अवश्य किया गया. 
     
       राजेन्द्र सच्चर आयोग ने अब अपनी विस्तृत रिपोर्ट प्रधानमन्त्री को सौंप दी है. इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने से पूर्व ही जिस प्रकार प्रधानमन्त्री डा. मनमोहन सिंह ने मुसलमानों की बराबर हिस्सेदारी की बात कह डाली वह तो स्पष्ट करता है कि सरकार ने मुसलमानों को आरक्षण देने का मन बना लिया है. इसकी झलक पहले भी मिल चुकी है जब आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमन्त्री ने अपने प्रदेश में मुसलमानों को आरक्षण दिया परन्तु आन्ध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने उसे निरस्त कर दिया. फिर भी सरकार का तुष्टीकरण का खेल जारी रहा. संघ लोक सेवा आयोग में मुस्लिम प्रत्याशियों के लिये सरकारी सहायता, रिजर्व बैंक से मुसलमानों को ऋण की विशेष सुविधा, विकास योजनाओं का कुछ प्रतिशत मुसलमानों के लिये आरक्षित करना ऐसे कदम थे जो मुस्लिम आरक्षण की भूमिका तैयार कर रहे थे. अब सच्चर आयोग ने आरक्षण की सिफारिश न करते हुये भी मुस्लिम आरक्षण के लिये मार्ग प्रशस्त कर दिया है.  
    
        मुसलमानों को बराबर की हिस्सेदारी का सवाल उठा ही क्योइसका उत्तर हे कि हमारे सेक्यूलर वामपंथी उदारवादी दलील देते हैं कि इस्लामी आतंकवाद मुसलमानों के पिछड़ेपन का परिणाम है. इसी तर्क के सन्दर्भ में दो महत्वपूर्ण तथ्यों को समझना समीचीन होगा. सच्चर आयोग ने ही अपनी रिपोर्ट में कहा है कि देश की जेलों में बन्द कैदियों की संख्या में मुसलमानों की संख्या उनकी जनसंख्या के अनुपात से काफी अधिक है. भारत की जेलों में कुल 102,652 मुसलमान बन्द हैं और उनमें भी 6 माह से 1 वर्ष की सजा काट रहे मुसलमानों की संख्या का प्रतिशत और भी अधिक है. कुछ लोग इसका कारण भी मुसलमानों के पिछड़ेपन को ठहरा सकते हैं पर ऐसा नहीं है.
     केवल भारत में ही नहीं फ्रांस, इटली, ब्रिटेन, स्काटलैण्ड और अमेरिका में भी जेलों में बन्द मुसलमानों का प्रतिशत उनकी कुल जनसंख्या के अनुपात में अधिक है. इसका कारण मुसलमानों का पिछड़ापन नहीं वरन् जेलों में गैर मुसलमान कैदियों का मुसलमानों द्वारा कराया जाने वाला धर्मान्तरण है. अभी हाल में मुम्बई में आर्थर रोड जेल में डी कम्पनी के गैंगस्टरों द्वारा हिन्दू कैदियों को धर्मान्तरित कर उन्हें मदरसों में जिहाद के प्रशिक्षण का मामला सामने आया था. यह उदाहरण स्पष्ट करता है कि मुसलमान का एकमेव उद्देश्य अपना धर्म मानने वालों की संख्या बढ़ाना है. इस कट्टरपंथी सोच को आरक्षण या विशेषाधिकार देने का अर्थ हुआ उन्हें अपना एजेण्डा पालन करने की छूट देना.
    
        दूसरा उदाहरण 22 जून 2006 को अमेरिका स्थित सेन्ट्रल पिउ रिसर्च सेन्टर द्वारा किया गये सर्वेक्षण की रिपोर्ट है 6 मुस्लिम बहुल और 7 गेर मुस्लिम देशों में किये गये सर्वेक्षण के आधार पर प्रसिद्ध अमेरिकी विद्वान डेनियल पाइप्स ने निष्कर्ष निकाला कि दो श्रेणी के देशों के मुसलमान अलग-थलग और कट्टर हैं एक तो ब्रिटेन जहाँ उन्हें विशेषाधिकार प्राप्त है और दूसरा नाइजीरिया जहाँ शरियत का राज्य चलता है. अर्थात विशेषाधिकार मुसलमानों को और कट्टर बनाता है. ब्रिटेन का उदाहरण भारत के लिये प्रासंगिक है क्योंकि भारत की शासन व्यवस्था और राजनीतिक पद्धति काफी कुछ ब्रिटेन की ही भाँति है. 
    
               इन दृष्टान्तों की पृष्ठभूमि में केन्द्र सरकार के मुस्लिम तुष्टीकरण के पागलपन को समझने की आवश्यकता है विशेषकर तब जब जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी सार्वजनिक रूप से श्रीमती सोनिया गाँधी के साथ इस्लामी संगठनों के सम्पर्क की बात कह चुके हैं. ऐसा लगता है इस्लाम बहुसंख्यक हिन्दू समाज की कनपटी पर बन्दूक रखकर आतंकवादी घटनाओं के सहारे अपने लिये विशेषाधिकार चाहता है.  
   
                 वे जनसंख्या उपायों का पालन नहीं करेंगे और जनसंख्या बढ़ायेंगे , देश के किसी कानून का पालन नहीं करेंगें और ऊपर देश में बम विस्फोट कर आरक्षण तथा विशेषाधिकार भी प्राप्त करेंगे. यह फैसला हिन्दुओं को करना है कि उन्हें धिम्मी बनकर शरियत के अधीन जजिया देकर रहना है या फिर ऋषियों की परम्परा जीवित रखकर इसे देवभूमि बने रहने देना है.
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शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

हिन्दू धर्म


१ ऐसा धर्म जिसमे हजारो जातिया जुडी हुई है … गर्व से कहो हम हिन्दू है …
भारतवर्ष को प्राचीन ऋषियों ने “हिन्दुस्थान” नाम दिया था जिसका अपभ्रंश “हिन्दुस्तान” है। “बृहस्पति आगम” के अनुसार:
हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्। तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥
अर्थात, हिमालय से प्रारम्भ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है।हिन्दी में इस धर्म को सनातन धर्म अथवा वैदिक धर्म भी कहते हैं।विश्व के सभी धर्मों में सबसे पुराना धर्म है। ये वेदों पर आधारित धर्म है, जो अपने अन्दर कई अलग अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय, और दर्शन समेटे हुए है। इसमें कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, लेकिन वास्तव में यह एकेश्वरवादी धर्म है।
हिन्दू धर्म का इतिहास
हिन्दू धर्म का १९६०८५३११० साल का इतिहास हैं। भारत (और आधुनिक पाकिस्तानी क्षेत्र) की सिन्धु घाटी सभ्यता में हिन्दू धर्म के कई चिह्न मिलते हैं। इनमें एक अज्ञात मातृदेवी की मूर्तियाँ, शिव पशुपति जैसे देवता की मुद्राएँ, लिंग, पीपल की पूजा, इत्यादि प्रमुख हैं। इतिहासकारों के एक दृष्टिकोण के अनुसार इस सभ्यता के अन्त के दौरान मध्य एशिया से एक अन्य जाति का आगमन हुआ, जो स्वयं को आर्य कहते थे, और संस्कृत नाम की एक हिन्द यूरोपीय भाषा बोलते थे। एक अन्य दृष्टिकोण के अनुसार सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग स्वयं ही आर्य थे और उनका मूलस्थान भारत ही था।
आर्यों की सभ्यता को वैदिक सभ्यता कहते हैं। पहले दृष्टिकोण के अनुसार लगभग १७०० ईसा पूर्व में आर्य अफ़्ग़ानिस्तान, कश्मीर, पंजाब और हरियाणा में बस गये। तभी से वो लोग (उनके विद्वान ऋषि) अपने देवताओं को प्रसन्न करने के लिये वैदिक संस्कृत में मन्त्र रचने लगे। पहले चार वेद रचे गये, जिनमें ऋग्वेद प्रथम था। उसके बाद उपनिषद जैसे ग्रन्थ आये। हिन्दू मान्यता के अनुसार वेद, उपनिषद आदि ग्रन्थ अनादि, नित्य हैं, ईश्वर की कृपा से अलग-अलग मन्त्रद्रष्टा ऋषियों को अलग-अलग ग्रन्थों का ज्ञान प्राप्त हुआ जिन्होंने फिर उन्हें लिपिबद्ध किया। बौद्ध और धर्मों के अलग हो जाने के बाद वैदिक धर्म मे काफ़ी परिवर्तन आया। नये देवता और नये दर्शन उभरे। इस तरह आधुनिक हिन्दू धर्म का जन्म हुआ।
दूसरे दृष्टिकोण के अनुसार हिन्दू धर्म का मूल कदाचित सिन्धु सरस्वती परम्परा (जिसका स्रोत मेहरगढ़ की ६५०० ईपू संस्कृति में मिलता है) से भी पहले की भारतीय परम्परा में है।
जिस संस्कृति या धर्म की उत्पत्ती एवं विकास भारत भूमि पर नहीं हुआ है, वह धर्म या संस्कृति भारतीय ( हिन्दू ) कैसे हो सकती है।
1. ईश्वर एक नाम अनेक
2. ब्रह्म या परम तत्त्व सर्वव्यापी है
3. ईश्वर से डरें नहीं, प्रेम करें और प्रेरणा लें
4. हिन्दुत्व का लक्ष्य स्वर्ग-नरक से ऊपर
5. हिन्दुओं में कोई एक पैगम्बर नहीं है, बल्कि अनेकों पैगंबर हैं.
6. धर्म की रक्षा के लिए ईश्वर बार-बार पैदा होते हैं
7. परोपकार पुण्य है दूसरों के कष्ट देना पाप है.
8. जीवमात्र की सेवा ही परमात्मा की सेवा है
9. स्त्री आदरणीय है
10. सती का अर्थ पति के प्रति सत्यनिष्ठा है
11. हिन्दुत्व का वास हिन्दू के मन, संस्कार और परम्पराओं में
12. पर्यावरण की रक्षा को उच्च प्राथमिकता
13. हिन्दू दृष्टि समतावादी एवं समन्वयवादी
14. आत्मा अजर-अमर है
15. सबसे बड़ा मंत्र गायत्री मंत्र
16. हिन्दुओं के पर्व और त्योहार खुशियों से जुड़े हैं
17. हिन्दुत्व का लक्ष्य पुरुषार्थ है और मध्य मार्ग को सर्वोत्तम माना गया है
18. हिन्दुत्व एकत्व का दर्शन है

हिन्दू लड़की का बलात धर्मपरिवर्तन कर मुस्लिम से शादी कराई


हिन्दू लड़की का बलात धर्मपरिवर्तन कर मुस्लिम से शादी कराई





कराची.पाकिस्तान के दक्षिणी शहर कराची में एक किशोरी हिन्दू लड़की को कथित तौर पर जबरदस्ती इस्लाम धर्म कबूल करवाकर एक मुस्लिम व्यक्ति से शादी करवा दी गई। लड़की के परिवार वालों ने थाने में मामला दर्ज कराया है।


लड़की की पहचान भारती नाम से हुई है। धर्म परिवर्तन के बाद उसका नाम आएशा कर दिया गया। एक्सप्रेस ट्रिब्यून अखबार के मुताबिक कराची के ल्यारी इलाके में यह 18वां ऐसा मामला है जिसमें बलात धर्मपरिवर्तन के बाद शादी कराई गई है।


लड़की के परिवार वालों ने आरोप लगाया है कि उसे जबरदस्ती इस्लाम धर्म कबूल करवा कर एक मुस्लिम आदमी से शादी करा दी गई।परिवार वालों ने बघदादी पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज कराया है।


स्थानीय अदालत अब मामले की सुनवाई कर रहा है।

अखबार के मुताबिक शनिवार को कोर्ट में पेशी के दौरान लड़की एक काले 'अबया' लिबास में आई और अपने माता-पिता की तरफ देख कर बमुश्किल नजर मिलाई।

लड़की के पिता नरेन दास ने बताया "उस पर अपनी मर्जी से धर्मपरिवर्तन की बात कहने का दबाव डाला जा रहा है,अगर वो ऐसा नहीं कहती है तो हमें नुकसान पहुचाने की धमकी दी जा रही है।"

भारती की मां दिल की मरीज हैं। अपनी बेटी के अदालत में एक बार भी उन्हें न देखे जाने से वह दुखी हैं।

उन्होंने कहा "वह मेरी एकमात्र बेटी है। वह मुझसे बात नहीं करना चाहती और न ही मिलना चाहती है। मैंने उसे जन्म दिया और पास-पोस कर बड़ा किया है।"

दास ने नेशनल डाटा बेस और पंजीयन प्राधिकरण के रिकॉर्ड से कॉपी निकाली है जो बताता है कि उनकी बेटी की उम्र 15 साल है।

हालांकि लड़की का इस्लाम धर्म में धर्मपरिवर्तन और शादी के कागजात में लड़की की उम्र 18 दर्शाई गई है। दास ने कहा "शादी के कागजात में उसके उम्र के साथ छेड़छाड़ की गई है। उसकी उम्र शादी लायक नहीं है।"

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

मै हिन्दू हों: हिन्दू धर्म का इतिहास


मै हिन्दू हों: हिन्दू धर्म का इतिहास

हिन्दू मापन प्रणाली
हिन्दू धर्म का इतिहास अति प्राचीन है। इस धर्म को वेदकाल से भी पूर्व का माना जाता है, क्योंकि वैदिक काल और वेदों की रचना का काल अलग-अलग माना जाता है। यहां शताब्दियों से मौखिक परंपरा चलती रही, जिसके द्वारा इसका इतिहास व ग्रन्थ आगे बढ़ते रहे। उसके बाद इसे लिपिबद्ध करने का काल भी बहुत लंबा रहा है। हिन्दू धर्म के सर्वपूज्य ग्रन्थ हैं वेद। वेदों की रचना किसी एक काल में नहीं हुई। विद्वानों ने वेदों के रचनाकाल का आरंभ ४५०० ई.पू. से माना है। यानि यह धीरे-धीरे रचे गए और अंतत: पहले वेद को तीन भागों में संकलित किया गया- ऋग्वेद, यजुर्वेद व सामवेद जि‍से वेदत्रयी कहा जाता था। मान्यता अनुसार वेद का वि‍भाजन राम के जन्‍म के पूर्व पुरुरवा ऋषि के समय में हुआ था। बाद में अथर्ववेद का संकलन ऋषि‍ अथर्वा द्वारा कि‍या गया। वहीं एक अन्य मान्यता अनुसार कृष्ण के समय में वेद व्यास ने वेदों का विभाग कर उन्हें लिपिबद्ध किया था। इस मान से लिखित रूप में आज से ६५०८ वर्ष पूर्व पुराने हैं वेद। श्रीकृष्ण के आज से ५३०० वर्ष पूर्व होने के तथ्‍य ढूँढ लिए गए हैं।
हिंदू और जैन धर्म की उत्पत्ति पूर्व आर्यों की अवधारणा में है जो ४५०० ई.पू. मध्य एशिया से हिमालय
चित्र:Rigvedic geography.jpg

ऋग्वेद का भूगोलीय क्षितिज (जिसमें नदियों के नाम एवंसीमेटरी एच दिये हैं। ये हिन्दूकुश और पंजाब क्षेत्र से ऊपरी गांगेय क्षेत्र तक फैला हुआ था।
तक फैले थे। आर्यों की ही एक शाखा ने पारसी धर्म की स्थापना भी की। इसके बाद क्रमश: यहूदी धर्म दो हजार ई.पू.,बौद्ध धर्म पाँच सौ ई.पू., ईसाई धर्म सिर्फ दो हजार वर्ष पूर्व, इस्लाम धर्म आज से १४०० वर्ष पूर्व हुआ।
धार्मिक साहित्य अनुसार हिंदू धर्म की कुछ और भी धारणाएँ हैं। मान्यता यह भी है कि ९० हजार वर्ष पूर्व इसका आरंभ हुआ था। रामायण, महाभारत और पुराणों में सूर्य और चंद्रवंशी राजाओं की वंश परम्परा का उल्लेख उपलब्ध है। इसके अलावा भी अनेक वंशों की उत्पति और परम्परा का वर्णन आता है। उक्त सभी को इतिहास सम्मत क्रमबद्ध लिखना बहुत ही कठिन कार्य है, क्योंकि पुराणों में उक्त इतिहास को अलग-अलग तरह से व्यक्त किया गया है जिसके कारण इसके सूत्रों में बिखराव और भ्रम निर्मित जान पड़ता है, फिर भी धर्म के ज्ञाताओं के लिए यह भ्रम नहीं है।
असल में हिंदुओं ने अपने इतिहास को गाकर, रटकर और सूत्रों के आधार पर मुखाग्र जिंदा बनाए रखा। यही कारण रहा कि वह इतिहास धीरे-धीरे काव्यमय और श्रृंगारिक होता गया जिसे आधुनिक लोग इतिहास मानने को तैयार नहीं हैं। वह समय ऐसा था जबकि कागज और कलम नहीं होते थे। इतिहास लिखा जाता था शिलाओं पर, पत्थरों पर और मन पर।
हिंदू धर्म के इतिहास ग्रंथ पढ़ें तो ऋषि-मुनियों की परम्परा के पूर्व मनुओं की परम्परा का उल्लेख मिलता है जिन्हेंजैन धर्म में कुलकर कहा गया है। ऐसे क्रमश: १४ मनु माने गए हैं जिन्होंने समाज को सभ्य और तकनीकी सम्पन्न बनाने के लिए अथक प्रयास किए। धरती के प्रथम मानव का नाम स्वायंभव मनु था और प्रथम ‍स्त्री थी शतरूपा। महाभारत में आठ मनुओं का उल्लेख है। इस वक्त धरती पर आठवें मनु वैवस्वत की ही संतानें हैं। आठवें मनु वैवस्वत के काल में ही भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार हुआ था।
पुराणों में हिंदू इतिहास का आरंभ सृष्टि उत्पत्ति से ही माना जाता है। ऐसा कहना कि यहाँ से शुरुआत हुई यह ‍शायद उचित न होगा फिर भी हिंदू इतिहास ग्रंथ महाभारत और पुराणों में मनु (प्रथम मानव) से भगवान कृष्ण की पीढ़ी तक का उल्लेख मिलता है।