गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

पाकिस्तान से आए हिन्दुओं की व्यथा



कहा- इस्लाम कबूल करने के लिए करते हैं मजबूर
पाकिस्तान में हिन्दुओं पर लगातार लटकते खतरे को महसूस करते हुए वहां से हाल ही में भारत आया 140 हिन्दुओं का एक समूह यहीं रह जाना चाहता है और राजधानी दिल्ली में अपना आशियाना बनाने की चाह रखता है।

पाकिस्तान के सिंध प्रांत से यह समूह पर्यटन वीजा पर भारत आया था। उनके वीजा की अवधि समाप्त हो चुकी है, लेकिन अब इस समूह के सदस्य अपने जन्मस्थान वापस नहीं जाना चाहते क्योंकि उनका मानना है कि पाकिस्तान में उनका भविष्य संकट में रहेगा।

इस हिंदू समूह में 27 परिवारों के सदस्य शामिल हैं और इन लोगों के वीजा की अवधि दो महीने पहले ही समाप्त हो चुकी है। ये लोग पाकिस्तान के हैदराबाद के पास मतियारी जिला स्थित एक गांव के निवासी हैं। इन लोगों का कहना है कि वे भारत में स्वयं को सुरक्षित महसूस करते हैं।

ये लोग उत्तरी दिल्ली स्थित मजनूं का टीला इलाके में एक संगठन की ओर से लगाए गए शिविरों में रह रहे हैं। इस समूह के बुजुर्गों, युवाओं और बच्चों की भारत सरकार से केवल एक ही अपील है कि उनकी वीजा अवधि को बढ़ा दिया जाए और शहर में उन्हें रहने की उचित व्यवस्था मुहैया कराई जाए।

सालों तक इंतजार के बाद पर्यटन वीजा पाने वाले इस 140 पाकिस्तानियों के समूह ने दो सितंबर को पैदल ही सीमा पार की और दो दिन पहले राजधानी दिल्ली पहुंचा।

एक गैर सरकारी संगठन से जुड़े गंगाराम का कहना है कि उन्होंने इस बारे में प्रधानमंत्री मनमाहेनसिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखा है, लेकिन दोनों के पास से अभी तक कोई जवाब नहीं आया है।

एक शिविर में अपने परिजनों और दोस्तों से घिरी, उनके लिए रोटियां सेंक रही 20 वर्षीय यमुना पाकिस्तान छोड़ने की अपनी कहानी सुना रही थी और उसकी आंखों में आशा की एक किरण थी कि कम से कम उसके बच्चों को तो शांतिपूर्ण वातावरण में बेहतर जीवन और शिक्षा मिल सकेगी।

अपने परिवार को भोजन परोसते हुए उसने बताया कि पाकिस्तान में कोई धार्मिक स्वतंत्रता नहीं है। हमें (हिन्दुओं) कभी पढ़ने की इजाजत नहीं मिली। हमें हमेशा निशाना बनाया जाता है। हम भारतीय वीजा के लिए इंतजार कर रहे थे ताकि यहां आकर बस सकें। हम बस वापस नहीं जाना चाहते।

डेरा बाबा धूनीदास की ओर से दिल्ली आए सभी 27 परिवारों को रहने के लिए अलग-अलग तंबू दिए गए हैं। समूह के कुछ युवकों ने तो आसपास की दुकानों में काम करना भी शुरू कर दिया है।

थोड़े समय के लिए स्कूल गई यमुना का कहना है कि इन परिवारों ने अपने घर, भूमि, मवेशी और बाकी सभी चीजें सिर्फ अपने मन में यह प्रार्थना करते हुए छोड़ दी कि ‘भारतीय हमारी मदद करेंगे।’ चन्द्रमा (40) ने यमुना की पाकिस्तान छोड़ने की दास्तान को कुछ यूं पूरा किया।

उन्होंने दावा किया कि कि बच्चे जब स्कूल गए तो उन्हें अलग बैठने के लिए कहा गया। उन्हें वहां पानी तक नहीं मिला। हम डर के साथ नहीं जीना चाहते। इसलिए हम पर्यटन वीजा पर यहां आ गए। उन्होंने कहा कि समुदाय अपने खर्चे खुद उठा सकता है, वह बस अपनी वीजा अवधि बढ़वाना चाहता है और रहने की जगह चाहता है ताकि उनके बच्चे फिर से अपनी शिक्षा शुरू कर सकें। 

इसी समूह का हिस्सा 13 वर्षीय आरती की कहानी किसी को भी भावुक कर सकती है। उसने कभी पढ़ाई नहीं की और उसने अपने दादा-दादी से हिन्दू मंत्र सीखे हैं। जब वह रसोई से छुट्टी पा जाती है तो अपने समूह के अन्य बच्चों को भी मंत्र सिखाती है। अपने भाई के साथ बैठी आरती ने बताया कि मैंने मंत्र सीखे हैं और चाहती हूं कि मेरे दूसरे साथी भी इसे सीखें।

आरती का भाई अपना नाम नहीं बताना चाहता था मगर पूछ रहा था कि वे ऐसा क्यों नहीं कर सकते, हिन्दू होने के बावजूद क्या हम भारत में नहीं रह सकते? उसने कहा कि हजारों की संख्या में बांग्लादेशी, नेपाली और तिब्बती भारत में रह रहे हैं। हम यहां क्यों नहीं रह सकते? सरकार को हमारे लिए व्यवस्था करनी चाहिए ताकि हम अपना जीवन यहां गुजार सकें। 

उसने कहा कि वहां हम शांति से कैसे रह सकते हैं, जबकि हर रोज कोई आता है और हमें इस्लाम कबूल करने के लिए कहता है। पाकिस्तान में अपने गांव में एक मैकेनिक का काम करने वाले सागर ने अपने पड़ोसी की बातों पर मुहर लगाते हुए कहा कि पर्यटन वीजा ही वहां से बाहर निकलने का एक मात्र रास्ता था।

उसने कहा कि हमारे गांव में कुछ लोग आकर हमें मारा करते थे। वह हमारे घरों से सामान उठाकर ले जाया करते थे। परिस्थितियां कभी बेहतर नहीं हुईं और न कभी होंगी। अब हम शांति से जीना चाहते हैं। क्रिकेट खेल रहा 12 वर्षीय अमर कहता है कि हम वापस नहीं जाना चाहते। मैं वापस जाने से डरता हूं। मैं यहीं रहना चाहता हूं। (भाषा)

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